प्रो. आर. के कुलमित्र ने यह सीख दिया कि हन्दी साहित्य के विद्यार्थियों को सदैव ही जागरूक रहना चाहिए, अंधेर-नगरी अन्धों का हाथी प्रहसन एवं नाटक के माध्यम से वर्तमान परिवेश में साहित्य के महत्व के बारे में बताया।
प्रो. थवाईत (वाणिज्य-विभाग) इनकी यह उद्घोषणा के विद्यार्थियों में कलात्मक प्रतिभा की कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें पहचानने की, ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया और मन ही मन उस कलात्मक प्रतिभा को स्वयं में ढूंढता रहा हूँ।
रुपेश नागे ने जो कि साहित्य का विद्यार्थी न होते हुए भी साहित्य प्रेमी है उसने साहित्य संबंधी लेख लिखने में सर्वदा ही मेरा मनोबल बढ़ाया है, इनके सहयोग के सहारे ही मुझमें ज्ञान के अंधेरे से लड़ने की क्षमता आई है। अन्त में मैं इन महान गुऔं जिनके मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही जो साहित्य सृजन "कोलाहल” रचना संग्रह के नाम से परिणित किया हूँ इनमें सर्वश्री डॉ. एस.जे. कुपटकर (विभागाध्यक्ष हिन्दी-विभाग), प्रो. एन.आर. साव, प्रो. आर.के. कुलमित्र, डॉ. एस.आर. बंजारे, श्री पी.के. श्रीवास्तव (मुख्य ग्रंथपाल), श्रीमती ललता शर्मा (सहायक ग्रंथ पाल) एवं भृत्य गोवर्धन (भैय्या) तथा विशेष रूप से भानुप्रतापदेव शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रति आभार-व्यक्त करते हुए श्रद्धेय गुरजनों को नमन करता हूँ।
"> प्रो. आर. के कुलमित्र ने यह सीख दिया कि हन्दी साहित्य के विद्यार्थियों को सदैव ही जागरूक रहना चाहिए, अंधेर-नगरी अन्धों का हाथी प्रहसन एवं नाटक के माध्यम से वर्तमान परिवेश में साहित्य के महत्व के बारे में बताया।
प्रो. थवाईत (वाणिज्य-विभाग) इनकी यह उद्घोषणा के विद्यार्थियों में कलात्मक प्रतिभा की कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें पहचानने की, ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया और मन ही मन उस कलात्मक प्रतिभा को स्वयं में ढूंढता रहा हूँ।
रुपेश नागे ने जो कि साहित्य का विद्यार्थी न होते हुए भी साहित्य प्रेमी है उसने साहित्य संबंधी लेख लिखने में सर्वदा ही मेरा मनोबल बढ़ाया है, इनके सहयोग के सहारे ही मुझमें ज्ञान के अंधेरे से लड़ने की क्षमता आई है। अन्त में मैं इन महान गुऔं जिनके मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही जो साहित्य सृजन "कोलाहल” रचना संग्रह के नाम से परिणित किया हूँ इनमें सर्वश्री डॉ. एस.जे. कुपटकर (विभागाध्यक्ष हिन्दी-विभाग), प्रो. एन.आर. साव, प्रो. आर.के. कुलमित्र, डॉ. एस.आर. बंजारे, श्री पी.के. श्रीवास्तव (मुख्य ग्रंथपाल), श्रीमती ललता शर्मा (सहायक ग्रंथ पाल) एवं भृत्य गोवर्धन (भैय्या) तथा विशेष रूप से भानुप्रतापदेव शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रति आभार-व्यक्त करते हुए श्रद्धेय गुरजनों को नमन करता हूँ।
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मैं अपने हितैषी और मेरे प्रति आशीष स्वरूप हाथ फेरने वालों के प्रति तथा मेरे अध्ययन में मार्गदर्शक बनकर मुझे आज संघर्ष करने लायक बनाया उनको धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आभार व्यक्त करता हूँ।
प्रो.एन.आर. साव सहायक प्राध्यापक ने परख, गबन, गोदान, आवारा मसीहा, निराला, अज्ञेय और मुक्तिबोध के अंधेरे में (व्यक्तित्व की खोज) काव्य-आदि साहित्य की महान् कृतियों के माध्यम से अपने व्याख्यान में प्रति-पल एक नवीन विचार-धारा और जीवन के लक्ष्य को पाने का मार्ग प्रशस्त किया।
विभागाध्यक्ष डॉ. एस. जे. कुपटकर ने अशोक के फूल, विकलांग श्रद्धा का दौर, हाशिये पर नोट्स, एक साहित्यिक की डायरी, लछमा आदि निबंध संग्रह का अध्यापन कार्य बी.ए. भाग तीन में किया और हमेशा यह कहकर आत्म-विश्वास बढ़ाया कि बी.ए.भाग तीन का परिणाम ही आपके भविष्य का निर्धारण करेगी। अतः उनका यह सबक ध्यान में खकर ही मैने अपने अध्ययन रूपी बाण से दितीय श्रेणी रूपी लक्ष्य को साधने में सफल हुआ।
डॉ. एस. आर. बंजारे जिनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से ही मैंने "हिन्दी साहित्य" को अपने मुख्य विषय के रूप में चुना।
प्रो. आर. के कुलमित्र ने यह सीख दिया कि हन्दी साहित्य के विद्यार्थियों को सदैव ही जागरूक रहना चाहिए, अंधेर-नगरी अन्धों का हाथी प्रहसन एवं नाटक के माध्यम से वर्तमान परिवेश में साहित्य के महत्व के बारे में बताया।
प्रो. थवाईत (वाणिज्य-विभाग) इनकी यह उद्घोषणा के विद्यार्थियों में कलात्मक प्रतिभा की कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें पहचानने की, ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया और मन ही मन उस कलात्मक प्रतिभा को स्वयं में ढूंढता रहा हूँ।
रुपेश नागे ने जो कि साहित्य का विद्यार्थी न होते हुए भी साहित्य प्रेमी है उसने साहित्य संबंधी लेख लिखने में सर्वदा ही मेरा मनोबल बढ़ाया है, इनके सहयोग के सहारे ही मुझमें ज्ञान के अंधेरे से लड़ने की क्षमता आई है। अन्त में मैं इन महान गुऔं जिनके मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही जो साहित्य सृजन "कोलाहल” रचना संग्रह के नाम से परिणित किया हूँ इनमें सर्वश्री डॉ. एस.जे. कुपटकर (विभागाध्यक्ष हिन्दी-विभाग), प्रो. एन.आर. साव, प्रो. आर.के. कुलमित्र, डॉ. एस.आर. बंजारे, श्री पी.के. श्रीवास्तव (मुख्य ग्रंथपाल), श्रीमती ललता शर्मा (सहायक ग्रंथ पाल) एवं भृत्य गोवर्धन (भैय्या) तथा विशेष रूप से भानुप्रतापदेव शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रति आभार-व्यक्त करते हुए श्रद्धेय गुरजनों को नमन करता हूँ।
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Product Details

  • Format: Paperback, Ebook
  • Book Size:5.5 x 8.5
  • Total Pages:94 pages
  • Language:Hindi
  • ISBN:
  • Publication Date:October 7 ,2020

Product Description

मैं अपने हितैषी और मेरे प्रति आशीष स्वरूप हाथ फेरने वालों के प्रति तथा मेरे अध्ययन में मार्गदर्शक बनकर मुझे आज संघर्ष करने लायक बनाया उनको धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आभार व्यक्त करता हूँ।
प्रो.एन.आर. साव सहायक प्राध्यापक ने परख, गबन, गोदान, आवारा मसीहा, निराला, अज्ञेय और मुक्तिबोध के अंधेरे में (व्यक्तित्व की खोज) काव्य-आदि साहित्य की महान् कृतियों के माध्यम से अपने व्याख्यान में प्रति-पल एक नवीन विचार-धारा और जीवन के लक्ष्य को पाने का मार्ग प्रशस्त किया।
विभागाध्यक्ष डॉ. एस. जे. कुपटकर ने अशोक के फूल, विकलांग श्रद्धा का दौर, हाशिये पर नोट्स, एक साहित्यिक की डायरी, लछमा आदि निबंध संग्रह का अध्यापन कार्य बी.ए. भाग तीन में किया और हमेशा यह कहकर आत्म-विश्वास बढ़ाया कि बी.ए.भाग तीन का परिणाम ही आपके भविष्य का निर्धारण करेगी। अतः उनका यह सबक ध्यान में खकर ही मैने अपने अध्ययन रूपी बाण से दितीय श्रेणी रूपी लक्ष्य को साधने में सफल हुआ।
डॉ. एस. आर. बंजारे जिनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से ही मैंने "हिन्दी साहित्य" को अपने मुख्य विषय के रूप में चुना।
प्रो. आर. के कुलमित्र ने यह सीख दिया कि हन्दी साहित्य के विद्यार्थियों को सदैव ही जागरूक रहना चाहिए, अंधेर-नगरी अन्धों का हाथी प्रहसन एवं नाटक के माध्यम से वर्तमान परिवेश में साहित्य के महत्व के बारे में बताया।
प्रो. थवाईत (वाणिज्य-विभाग) इनकी यह उद्घोषणा के विद्यार्थियों में कलात्मक प्रतिभा की कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें पहचानने की, ने मुझे बहुत ही प्रभावित किया और मन ही मन उस कलात्मक प्रतिभा को स्वयं में ढूंढता रहा हूँ।
रुपेश नागे ने जो कि साहित्य का विद्यार्थी न होते हुए भी साहित्य प्रेमी है उसने साहित्य संबंधी लेख लिखने में सर्वदा ही मेरा मनोबल बढ़ाया है, इनके सहयोग के सहारे ही मुझमें ज्ञान के अंधेरे से लड़ने की क्षमता आई है। अन्त में मैं इन महान गुऔं जिनके मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही जो साहित्य सृजन "कोलाहल” रचना संग्रह के नाम से परिणित किया हूँ इनमें सर्वश्री डॉ. एस.जे. कुपटकर (विभागाध्यक्ष हिन्दी-विभाग), प्रो. एन.आर. साव, प्रो. आर.के. कुलमित्र, डॉ. एस.आर. बंजारे, श्री पी.के. श्रीवास्तव (मुख्य ग्रंथपाल), श्रीमती ललता शर्मा (सहायक ग्रंथ पाल) एवं भृत्य गोवर्धन (भैय्या) तथा विशेष रूप से भानुप्रतापदेव शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रति आभार-व्यक्त करते हुए श्रद्धेय गुरजनों को नमन करता हूँ।
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