Satyasharad Sanhita
सत्यशरद सहिंता कहानी है...सत्य के वास्तविक प्रयोग की और शरद की शीतलता की...कि कैसे इन दोनों ने ‘अर्श से फ़लक’ तक का सफ़र तय किया...मैं सुनाने की भरपूर कोशिश करूँगी...कि कैसे ये दोनों अपने घर से खाली हाथ निकले और वर्तमान तक के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से अपने शिखर तक पहुंचे...
लेकिन यह कहानी स्वयं सत्य की ही है...जिसमें शब्दशः सच्चाई ही वर्णित हैं, क्योंकि अपने नाम के अनुसार वे आजीवन सूरज की भांति कठोर सत्य को ही परिभाषित करते रहे हैं...जिसमें पूरी तल्लीनता से अपना धर्म समझते हुये शारदा ने चाँद की भूमिका निभायी है, क्योंकि वही तो हैं, जिनकी शीतलता के कारण आज ये “सत्यशरद सहिंता” बन पाई हैं, वरना सत्य की ज्वाला में कहाँ कुछ टिक पाता है, स्वयं सत्य भी अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करता दिखाई पड़ता है...क्योंकि उसकी तपिश यथार्थ जीवन को पिघलाकर रख देती है...बेशक सूरज की ऊष्मा अपने शिखर पर जा पहुंचे, और धूप से सराबोर कर दे जीवन को...लेकिन चाँद की शीतलता के कारण ही जीवन जीवित रह पाता है, स्थिर रह पाता है...यह चाँद ही तो है, जो मन को स्थिर रखता है...रात में चाँद देखकर ही आदमी ज़िंदगी को जिंदा करने के लिये सपने बुनता है...
जैसे सूरज और चाँद दोनों की भागेदारी है जीवन को बनाये रखने में, उसी तरह सत्य एवं शरद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं...सुख-दुःख के सहभागी हैं...अपनी कठोर जीवन-यात्रा के सहचर हैं...जिसमें आगे वाले पहिये पर यदि आगे बढ़ने का उत्तरदायित्व है, रास्ता बनाने की जद्दोजहद है और गाड़ी के लिए ईंधन उपलब्ध करने की चिंता है... तो पीछे वाले पहिये पर पूरी गाड़ी का भार है, स्वयं आगे वाले पहिये को सँभालने की ज़िम्मेदारी है...और जीवन रुपी गाड़ी का संतुलन बनाये रखने की कशमकश है...शायद इसीलिए पापा ने एक उपन्यास लिखा था, जिसका नाम है...“पूनम का चाँद और जगमगाते सितारे”...लेकिन जीवन की आपा-धापी में वह अप्रकाशित ही रह गया है...
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Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5 x 8
- Total Pages:206 pages
- Language:HINDI
- ISBN:978-9390707140
- Publication Date:April 16 ,2021
Product Description
सत्यशरद सहिंता कहानी है...सत्य के वास्तविक प्रयोग की और शरद की शीतलता की...कि कैसे इन दोनों ने ‘अर्श से फ़लक’ तक का सफ़र तय किया...मैं सुनाने की भरपूर कोशिश करूँगी...कि कैसे ये दोनों अपने घर से खाली हाथ निकले और वर्तमान तक के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दृष्टि से अपने शिखर तक पहुंचे...
लेकिन यह कहानी स्वयं सत्य की ही है...जिसमें शब्दशः सच्चाई ही वर्णित हैं, क्योंकि अपने नाम के अनुसार वे आजीवन सूरज की भांति कठोर सत्य को ही परिभाषित करते रहे हैं...जिसमें पूरी तल्लीनता से अपना धर्म समझते हुये शारदा ने चाँद की भूमिका निभायी है, क्योंकि वही तो हैं, जिनकी शीतलता के कारण आज ये “सत्यशरद सहिंता” बन पाई हैं, वरना सत्य की ज्वाला में कहाँ कुछ टिक पाता है, स्वयं सत्य भी अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करता दिखाई पड़ता है...क्योंकि उसकी तपिश यथार्थ जीवन को पिघलाकर रख देती है...बेशक सूरज की ऊष्मा अपने शिखर पर जा पहुंचे, और धूप से सराबोर कर दे जीवन को...लेकिन चाँद की शीतलता के कारण ही जीवन जीवित रह पाता है, स्थिर रह पाता है...यह चाँद ही तो है, जो मन को स्थिर रखता है...रात में चाँद देखकर ही आदमी ज़िंदगी को जिंदा करने के लिये सपने बुनता है...
जैसे सूरज और चाँद दोनों की भागेदारी है जीवन को बनाये रखने में, उसी तरह सत्य एवं शरद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं...सुख-दुःख के सहभागी हैं...अपनी कठोर जीवन-यात्रा के सहचर हैं...जिसमें आगे वाले पहिये पर यदि आगे बढ़ने का उत्तरदायित्व है, रास्ता बनाने की जद्दोजहद है और गाड़ी के लिए ईंधन उपलब्ध करने की चिंता है... तो पीछे वाले पहिये पर पूरी गाड़ी का भार है, स्वयं आगे वाले पहिये को सँभालने की ज़िम्मेदारी है...और जीवन रुपी गाड़ी का संतुलन बनाये रखने की कशमकश है...शायद इसीलिए पापा ने एक उपन्यास लिखा था, जिसका नाम है...“पूनम का चाँद और जगमगाते सितारे”...लेकिन जीवन की आपा-धापी में वह अप्रकाशित ही रह गया है...
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