Ehsaso Ki Khushboo
हिम्मत की पगडंडियों पर पैर रखना सीख गई हूँ।
हाँ, मैं भी अब आँख उठाकर!चलना सीख गई हूँ।
आत्मविश्वास और ज़िम्मेदारियों की पहन माला।
हर हाल में हँस कर ! खुद को जीना सीख गई हूँ।
बहुत सहा, बहुत सुना तानों की वेदना को हमने।
अब चुभते काँटों को निकाल फेंकना सीख गई हूँ।
क्या पाया क्या खोया की परिभाषा को भूल कर।
हमने क्या किया? याद ये करते रहना सीख गई हूँ।
जीवन के इस सुंदर फुलवारी में करके सबसे प्रेम।
तज के बैर भाव पुष्प की भाँति खिलना सीख गई हूँ।
बहुत जी लिया है, हमने रिश्तों की खुशी के लिए।
आज आईने के सामने अपना मुँह उठाना सीख गई हूँ।
जीना चाहे मन हर एक पल , हर एक आज को ऐसे!
कि कल का क्या भरोसा, आज में रहना सीख गई हूँ।
हिम्मत की पगडंडियों पर पैर रखना सीख गई हूँ।
हाँ, मैं भी अब आँख उठाकर चलना सीख गई हूँ।
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Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5 x 8
- Total Pages:101 pages
- Language:HINDI
- ISBN:978-93-88256-12-4
- Publication Date:January 1 ,1970
Product Description
हिम्मत की पगडंडियों पर पैर रखना सीख गई हूँ।
हाँ, मैं भी अब आँख उठाकर!चलना सीख गई हूँ।
आत्मविश्वास और ज़िम्मेदारियों की पहन माला।
हर हाल में हँस कर ! खुद को जीना सीख गई हूँ।
बहुत सहा, बहुत सुना तानों की वेदना को हमने।
अब चुभते काँटों को निकाल फेंकना सीख गई हूँ।
क्या पाया क्या खोया की परिभाषा को भूल कर।
हमने क्या किया? याद ये करते रहना सीख गई हूँ।
जीवन के इस सुंदर फुलवारी में करके सबसे प्रेम।
तज के बैर भाव पुष्प की भाँति खिलना सीख गई हूँ।
बहुत जी लिया है, हमने रिश्तों की खुशी के लिए।
आज आईने के सामने अपना मुँह उठाना सीख गई हूँ।
जीना चाहे मन हर एक पल , हर एक आज को ऐसे!
कि कल का क्या भरोसा, आज में रहना सीख गई हूँ।
हिम्मत की पगडंडियों पर पैर रखना सीख गई हूँ।
हाँ, मैं भी अब आँख उठाकर चलना सीख गई हूँ।
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