To Fir Galat Kya Hai
तो फिर ग़लत क्या है
ठंडी सांस ले कर
बेहद निरीहता के साथ
तुमने आकाष की और ताका
मानी तुमने अपने अस्तित्व पर
प्रष्नचिह्न लगा दिया
मानी तुमने किसी ओर की तरफ़ ताका
मानी तुमने राजा को जन्म दिया
राजा है तो सत्ता है
सत्ता है तो राजा है
राजा ने अपनी सत्ता स्थापित की
सत्ता किसी का भला नहीं करती सिवा खु़द के
और किसी का भला करती भी है
तो भी सिर्फ़ अपने ही भले के लिए
तुमने ये सब समझा और सिर झटक दिया
मानी उसकी निरंकुषता को
स्थायित्व देते हुए समझौता कर लिया
इन तमाम बिगडी हुई परिस्थियों के बीच
तुमने सब से बुरा तब किया जब ठंडी साँस लेकर
सिर झटक कर
जे़ब से बीड़ी का बंडल निकाला
और एक बीड़ी सुलगाली
फिर एक लंबा क़ष मारा
ढेर सा धुआँ उगला
और चल दिए
तो फिर ग़लत क्या है
सत्ता निरंकुषता के षिखर पर है
नीरो बाँँसुरी बजा रहा है
और रोम जल रहा है।
.
Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5 x 8
- Total Pages:98 pages
- Language:Hindi
- ISBN:978-81-93825-44-0
- Publication Date:January 1 ,1970
Product Description
तो फिर ग़लत क्या है
ठंडी सांस ले कर
बेहद निरीहता के साथ
तुमने आकाष की और ताका
मानी तुमने अपने अस्तित्व पर
प्रष्नचिह्न लगा दिया
मानी तुमने किसी ओर की तरफ़ ताका
मानी तुमने राजा को जन्म दिया
राजा है तो सत्ता है
सत्ता है तो राजा है
राजा ने अपनी सत्ता स्थापित की
सत्ता किसी का भला नहीं करती सिवा खु़द के
और किसी का भला करती भी है
तो भी सिर्फ़ अपने ही भले के लिए
तुमने ये सब समझा और सिर झटक दिया
मानी उसकी निरंकुषता को
स्थायित्व देते हुए समझौता कर लिया
इन तमाम बिगडी हुई परिस्थियों के बीच
तुमने सब से बुरा तब किया जब ठंडी साँस लेकर
सिर झटक कर
जे़ब से बीड़ी का बंडल निकाला
और एक बीड़ी सुलगाली
फिर एक लंबा क़ष मारा
ढेर सा धुआँ उगला
और चल दिए
तो फिर ग़लत क्या है
सत्ता निरंकुषता के षिखर पर है
नीरो बाँँसुरी बजा रहा है
और रोम जल रहा है।
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