Main Panchhi Unmukt Gagan Ki
"मैं पंछी उन्मुक्त गगन की" काव्य संग्रह जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है कि यह मेरे हर्ष के गागर के अतिरेक को छलकाता मेरे अस्तित्व को एक सशक्त वजूद देता, एक मजबूत सम्बल प्रदान करता है जिस धरातल पर अवलंबित रहते हुए मेरे अंतस को आत्मिक सुकून की कशिश का आभास होता है जो चिरस्थाई है जिसके एहसासों की आभा कभी मद्धिम नहीं हो सकती जो सदैव ज्योतिपुंज की भांति प्रकाशवान रहती है जीवन को नद के नीर की तरह प्रवाह के संग प्रवाहित करती हुई लक्ष्य के करीब अपनी मंजिल को अंतिम शिखर पर अवर्तिण कर देती है और वहां पर व्यक्ति अपनी अभिलाषाओं की पूर्णता पर भावविभोर हो सृष्टि के अनहद नाद से तादात्म्य स्थापित कर लेता है। संसार की सांसारिक दुर्बलताओं से मुक्त हो उन्मुक्त पंछी की भांति नील गगन में आशाओं के पंख फैलाए स्वच्छंद विचरण करता हुआ अलौकिक व दिव्य सुख की अनुभूति का आभास करता है। आज जज़्बातों के वही उद्गार व एहसास सिमट कर इस काव्य संग्रह की गागर में समा कर जनमानस के हिय से मदिरालय के छलकते जाम की तरह लबों का स्पर्श पाकर पाठक स्वयं को कितना मदहोशित कर पाता है यह प्रश्न मैं पाठकों को निष्ठा पूर्वक समर्पित करती हूं वो अपने आप को कितने रोमांचित कर पाते हैं, कितने उत्साहित रहते हैं साहित्य की इस पृष्ठभूमि से रूबरू होने के लिए।.
Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5.5 x 8.5
- Total Pages:157 pages
- Language:Hindi
- ISBN:978-93-90229-07-9
- Publication Date:September 2 ,2020
Product Description
"मैं पंछी उन्मुक्त गगन की" काव्य संग्रह जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है कि यह मेरे हर्ष के गागर के अतिरेक को छलकाता मेरे अस्तित्व को एक सशक्त वजूद देता, एक मजबूत सम्बल प्रदान करता है जिस धरातल पर अवलंबित रहते हुए मेरे अंतस को आत्मिक सुकून की कशिश का आभास होता है जो चिरस्थाई है जिसके एहसासों की आभा कभी मद्धिम नहीं हो सकती जो सदैव ज्योतिपुंज की भांति प्रकाशवान रहती है जीवन को नद के नीर की तरह प्रवाह के संग प्रवाहित करती हुई लक्ष्य के करीब अपनी मंजिल को अंतिम शिखर पर अवर्तिण कर देती है और वहां पर व्यक्ति अपनी अभिलाषाओं की पूर्णता पर भावविभोर हो सृष्टि के अनहद नाद से तादात्म्य स्थापित कर लेता है। संसार की सांसारिक दुर्बलताओं से मुक्त हो उन्मुक्त पंछी की भांति नील गगन में आशाओं के पंख फैलाए स्वच्छंद विचरण करता हुआ अलौकिक व दिव्य सुख की अनुभूति का आभास करता है। आज जज़्बातों के वही उद्गार व एहसास सिमट कर इस काव्य संग्रह की गागर में समा कर जनमानस के हिय से मदिरालय के छलकते जाम की तरह लबों का स्पर्श पाकर पाठक स्वयं को कितना मदहोशित कर पाता है यह प्रश्न मैं पाठकों को निष्ठा पूर्वक समर्पित करती हूं वो अपने आप को कितने रोमांचित कर पाते हैं, कितने उत्साहित रहते हैं साहित्य की इस पृष्ठभूमि से रूबरू होने के लिए।.