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Author Dr. Achla Nagar

हिंदी साहित्य के महान लेखक अमृतलाल नागर की पुत्री अचला नागर को बचपन से ही लिखने-पढ़ने का शौक था। उनका जन्म दो दिसंबर 1939 को लखनऊ में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रतिभा देवी था। पिता उन्हें बिट्टो कहकर बुलाते थे। उन्होंने बीएससी, एमए और पीएचडी (हिंदी साहित्य) की शिक्षा प्राप्त की। 

अमर उजाला से विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि पिता के लिखे हुए कागजों पर नजर जरूर दौड़ाती थीं। वहीं से उन्हें लेखन अच्छा लगने लगा। वर्ष 1982 में डॉ. अचला नागर मुंबई में विख्यात फिल्मकार बीआर चोपड़ा की निर्माण संस्था बीआर फिल्मस से जुड़ गईं। 

यहीं उन्होंने निकाह फिल्म की पटकथा लिखी। इसके बाद आई जे. ओमप्रकाश निर्देशित फिल्म आखिर क्यों को आज भी एक स्त्री की सशक्त अभिव्यक्ति के लिहाज से महत्वपूर्ण फिल्म मानी जाती है। मेगा स्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म बागबान में उनकी लेखनी की आज भी चर्चा होती है। डॉ. अचला नागर फिलहाल अपने छोटे पुत्र व फिल्म निर्देशक सिद्धार्थ नागर के साथ मुंबई में रह रही हैं।

कई सुपरहिट फिल्में लिखीं, मिले पुरस्कार
कहानी संग्रह, नायक-खलनायक, बोल मेरी मछली, संस्मरण बाबूजी बेटाजी एंड कंपनी उनकी काफी चर्चित पुस्तकें हैं। साल 1982 की सुपरहिट फिल्म निकाह, आखिर क्यों, बागबान, बाबुल, ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागिन जैसी अनेकों फिल्मों की उन्होंने कहानी और पटकथा लिखी। 

फिल्म निकाह के लिए वर्ष 1983 में सर्वश्रेष्ठ संवाद का फिल्म फेयर पुरस्कार भी जीता। वर्ष 2003 में हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार, हिंदी उर्दू साहित्य एवार्ड कमेटी सम्मान, हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा यशपाल अनुशंसा पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया। 

वर्ष 2009 में हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी उत्तर प्रदेश द्वारा साहित्य शिरोमणि सम्मान पुरस्कार, महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी द्वारा सुब्रमण्यम भारती हिंदी सेतु विशिष्ट सेवा पुरस्कार 2010-2011 व फिल्म बाबुल के लिए उन्हे 2011 में दादा साहेब फाल्के अकादमी सम्मान से नवाजा गया।

नागरी प्रचारिणी में किया था पुस्तक का विमोचन 
ताजनगरी से डॉ. अचला नागर को बहुत लगाव है। करीब दो साल पहले वे आगरा आई थीं। उनकी पुस्तकें मंगला से शयन तक और बाइस्कोप वाला चितचोर का विमोचन उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभागार में किया था। मंगला से शयन तक पुस्तक को उन्होंने नाट्य पितामह स्व. राजेंद्र रघुवंशी को समर्पित किया था।

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