Vidhyapati Ka Sondarya Bodh
कौशिकी से गण्डकी तक 24 योजन लम्बे और हिमालय से गंगा तक 16 योजन चौड़े भू-भाग मिथिला को अपनी काकली से रसमग्न करने वाले मैथिल कोकिल के गीतों ने देशकाल की सीमाओं को पार कर अपनी गूँज से बंगभूमि, असम, उत्कल प्रदेश को झंकृत करते हुए सुदूर ब्रज तक में प्रसार पाया है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य को संस्कृत और प्राकृत अपभं्रश का स्वाभाविक विकास माना है इस प्रकार संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान विद्यापति ने शृंगार संबंधी विविध पक्षों का शास्त्रीय निरूपण के आधार पर अपने पदों का प्रतिपादन कर अपनी प्रतिभा के बल पर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है।
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Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5 x 8
- Total Pages:239 pages
- Language:Hindi
- ISBN:978-93-88256-49-0
- Publication Date:January 1 ,1970
Product Description
कौशिकी से गण्डकी तक 24 योजन लम्बे और हिमालय से गंगा तक 16 योजन चौड़े भू-भाग मिथिला को अपनी काकली से रसमग्न करने वाले मैथिल कोकिल के गीतों ने देशकाल की सीमाओं को पार कर अपनी गूँज से बंगभूमि, असम, उत्कल प्रदेश को झंकृत करते हुए सुदूर ब्रज तक में प्रसार पाया है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य को संस्कृत और प्राकृत अपभं्रश का स्वाभाविक विकास माना है इस प्रकार संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान विद्यापति ने शृंगार संबंधी विविध पक्षों का शास्त्रीय निरूपण के आधार पर अपने पदों का प्रतिपादन कर अपनी प्रतिभा के बल पर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है।
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