Prem Pawan
मेरे गाà¤à¤µ में à¤à¤• अनपॠबà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— को बहà¥à¤¤ सारे दोहे याद थे और वे दोहे के मरà¥à¤® à¤à¥€ समà¤à¤¤à¥‡ थे, हम सब बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को दोहे के माधà¥à¤¯à¥à¤® से समà¤à¤¾à¤¤à¥‡ थे....
करत-करत अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ के, जड़मति होत सà¥à¤œà¤¾à¤¨à¥¤
रसरी आवत जात है, सिल पर परत निसान।।
वृंद के दोहे
दà¥à¤– में सà¥à¤®à¤¿à¤°à¤¨ सब करै, सà¥à¤– में करै न कोय।
जो सà¥à¤– में सà¥à¤®à¤¿à¤°à¤¨ करै, दà¥à¤– काहे को होय।।
कबीर के दोहे
मैं इन दोहाकारों को बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करती हूà¤, आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•à¤¿à¤¤ होती हूठइनकी लेखनी पर जिसे अनपॠà¤à¥€ पॠगà¥à¤¨ लेते हैं...
बस यहीं से ललक हà¥à¤ˆ कि मà¥à¤à¥‡ इनके चरणों की धूल मिल जाय और मैं à¤à¥€ दोहे लिख सकूà¤....
महान संत कबीर, रहीम, तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी अब इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में नहीं हैं। मगर उनकी कही गई गूॠबातें आज à¤à¥€ हम सà¤à¥€ के लिठअà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में मशाल का कारà¥à¤¯ करती हैं।
कोई à¤à¥€ रचनाकार न हिनà¥à¤¦à¥‚ होता है। न मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ वह दà¥à¤¨à¤¯à¤¾à¤µà¥€ होने के वावजूद जाति धरà¥à¤® से ऊपर होता है
रचनाकार की रचनाà¤à¤ निकट सबंधी की तरह सबके जीवन में शामिल होकर पà¥à¤°à¥‡à¤® पातीं हैं।
दोहा जितना देखने में सरल लगता है उतना ही लिखने में कठिन है, दो तीन पनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के à¤à¤¾à¤µ को दो लाइन में विधान सहित लिखना गागर में सागर à¤à¤°à¤¨à¥‡ जैसा होता है...।
मैं आà¤à¤¾à¤°à¥€ हूठआदरणीय विजय राठौर सर जी का जिनकी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ और मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ में तीन सौ इकतीस दोहों से यह कावà¥à¤¯à¤ªà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• तैयार हà¥à¤ˆ है।
आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करती हूठआदरणीय पà¥à¤°à¥‹ सतीश देशपांडे निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤²à¥à¤ª जी का जिनका मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ समय-समय पर मिलता रहा।
पà¥à¤°à¤¿à¤¯ अनà¥à¤œ मिलन जी का à¤à¥€ हारà¥à¤¦à¤¿à¤• आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करती हूठजिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरे परिचय में दोहे रच दिà¤à¥¤
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Product Details
- Format: Hardcopy
- Book Size:5 x 8
- Total Pages:104 pages
- Language:HINDI
- ISBN:978-9390707614
- Publication Date:June 8 ,2021
Product Description
मेरे गाà¤à¤µ में à¤à¤• अनपॠबà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— को बहà¥à¤¤ सारे दोहे याद थे और वे दोहे के मरà¥à¤® à¤à¥€ समà¤à¤¤à¥‡ थे, हम सब बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को दोहे के माधà¥à¤¯à¥à¤® से समà¤à¤¾à¤¤à¥‡ थे....
करत-करत अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ के, जड़मति होत सà¥à¤œà¤¾à¤¨à¥¤
रसरी आवत जात है, सिल पर परत निसान।।
वृंद के दोहे
दà¥à¤– में सà¥à¤®à¤¿à¤°à¤¨ सब करै, सà¥à¤– में करै न कोय।
जो सà¥à¤– में सà¥à¤®à¤¿à¤°à¤¨ करै, दà¥à¤– काहे को होय।।
कबीर के दोहे
मैं इन दोहाकारों को बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करती हूà¤, आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•à¤¿à¤¤ होती हूठइनकी लेखनी पर जिसे अनपॠà¤à¥€ पॠगà¥à¤¨ लेते हैं...
बस यहीं से ललक हà¥à¤ˆ कि मà¥à¤à¥‡ इनके चरणों की धूल मिल जाय और मैं à¤à¥€ दोहे लिख सकूà¤....
महान संत कबीर, रहीम, तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी अब इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में नहीं हैं। मगर उनकी कही गई गूॠबातें आज à¤à¥€ हम सà¤à¥€ के लिठअà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ में मशाल का कारà¥à¤¯ करती हैं।
कोई à¤à¥€ रचनाकार न हिनà¥à¤¦à¥‚ होता है। न मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ वह दà¥à¤¨à¤¯à¤¾à¤µà¥€ होने के वावजूद जाति धरà¥à¤® से ऊपर होता है
रचनाकार की रचनाà¤à¤ निकट सबंधी की तरह सबके जीवन में शामिल होकर पà¥à¤°à¥‡à¤® पातीं हैं।
दोहा जितना देखने में सरल लगता है उतना ही लिखने में कठिन है, दो तीन पनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ के à¤à¤¾à¤µ को दो लाइन में विधान सहित लिखना गागर में सागर à¤à¤°à¤¨à¥‡ जैसा होता है...।
मैं आà¤à¤¾à¤°à¥€ हूठआदरणीय विजय राठौर सर जी का जिनकी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ और मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ में तीन सौ इकतीस दोहों से यह कावà¥à¤¯à¤ªà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• तैयार हà¥à¤ˆ है।
आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करती हूठआदरणीय पà¥à¤°à¥‹ सतीश देशपांडे निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤²à¥à¤ª जी का जिनका मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ समय-समय पर मिलता रहा।
पà¥à¤°à¤¿à¤¯ अनà¥à¤œ मिलन जी का à¤à¥€ हारà¥à¤¦à¤¿à¤• आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करती हूठजिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरे परिचय में दोहे रच दिà¤à¥¤
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