Munshi Premchan ki shrashth kahaaniyaan

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Munshi Premchan ki shrashth kahaaniyaan
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Munshi Premchan ki shrashth kahaaniyaan

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शहजादा दाराशिकोह शाहजहाँ के बड़े बेटे थे और बाह्य तथा आन्तरिक गुणों से परिपूर्ण। यद्यपि वे थे तो वली अहद मगर साहिबे किरान सानी1 ने उनकी बुद्धिमत्ता, विशेषता, गुणों और कलात्मकता को देखकर व्यावहारिक रूप में पूरे साम्राज्य की व्यवस्था उन्हीं को सौंप रखी थी। वे अन्य शहजादों की तरह सम्बद्ध प्रान्तों की सूबेदारी पर नियुक्त न किए जाते, वरन् राजधानी में ही उपस्थित रहते और अपने सहयोगियों की सहायता से साम्राज्य का कार्यभार संभालते। खेद का विषय है कि यद्यपि उनको योग्य, अनुभवी, गर्वोन्नत, आज्ञाकारी बनाने के लिए व्यावहारिकता की पाठशाला में शिक्षा दी गई, लेकिन देश की जनता को उनकी ओर से कोई स्मरणीय लाभ नहीं हुआ। इतिहासकारों का कथन है कि यदि औरंगजेब के स्थान पर शहजादा दाराशिकोह को गद्दी मिलती तो हिन्दुस्तान एक बहुत शक्तिशाली संयुक्त साम्राज्य हो जाता। यह कथन हालांकि किसी सीमा तक एक मानवीय गुण पर आधारित है, क्योंकि मृत्यु के पश्चात् प्रायः लोग मनुष्यों की प्रशंसा किया करते हैं, फिर भी यह देखना बहुत कठिन नहीं है कि इसमें सच्चाई की झलक भी पाई जाती है। शहजादा दाराशिकोह अकबर का अनुयायी था। वह केवल नाम का ही अकबर द्वितीय नहीं था, उसके विचार भी वैसे ही थे और उन विचारों को व्यावहारिकता में लाने का तरीका भी बिल्कुल मिलता हुआ नहीं, बल्कि उसके विचार अधिक रुचिकर थे और उनको व्यवहार में लाने के तरीके, नियमों और सिद्धान्तों में अधिक रुचि। उसकी गहन चिन्तन दृष्टि ने देख लिया था कि हिन्दुस्तान में स्थायी रूप से साम्राज्य का बना रहना सम्भव नहीं जब तक कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मेल-मिलाप और एकता स्थापित नहीं हो जाती। वह भली-भाँति जानता था कि शक्ति से साम्राज्य की जड़ नहीं जमती। साम्राज्य की स्थिरता व नित्यता के लिए यह आवश्यक है कि शासकगण लोकप्रिय सिद्धान्तों और सरल कानूनों से जनता के दिलों में घर कर लें। पत्थर के मजबूत किलों के बदले दिलों में घर करना अधिक महत्त्वपूर्ण है और सेना के बदले जनता की मुहब्बत व जान छिड़कने पर अधिक भरोसा करना आवश्यक है। दाराशिकोह ने इन सिद्धान्तों का व्यवहार करना प्रारम्भ किया था। उसने एक अत्यन्त रोचक तथा सार्थक पुस्तक लिखी थी जिसमें अकाट्य तर्कों से यह सिद्ध किया था कि मुसलमानों की नित्यता हिन्दुओं से एकता व संगठन पर आधारित है। .

Product Details

  • Format: Paperback, Ebook
  • Book Size:5.5 x 8.5
  • Total Pages:99 pages
  • Language:Hindi
  • ISBN:978-81-94534-21-1
  • Publication Date:July 6 ,2020

Product Description

शहजादा दाराशिकोह शाहजहाँ के बड़े बेटे थे और बाह्य तथा आन्तरिक गुणों से परिपूर्ण। यद्यपि वे थे तो वली अहद मगर साहिबे किरान सानी1 ने उनकी बुद्धिमत्ता, विशेषता, गुणों और कलात्मकता को देखकर व्यावहारिक रूप में पूरे साम्राज्य की व्यवस्था उन्हीं को सौंप रखी थी। वे अन्य शहजादों की तरह सम्बद्ध प्रान्तों की सूबेदारी पर नियुक्त न किए जाते, वरन् राजधानी में ही उपस्थित रहते और अपने सहयोगियों की सहायता से साम्राज्य का कार्यभार संभालते। खेद का विषय है कि यद्यपि उनको योग्य, अनुभवी, गर्वोन्नत, आज्ञाकारी बनाने के लिए व्यावहारिकता की पाठशाला में शिक्षा दी गई, लेकिन देश की जनता को उनकी ओर से कोई स्मरणीय लाभ नहीं हुआ। इतिहासकारों का कथन है कि यदि औरंगजेब के स्थान पर शहजादा दाराशिकोह को गद्दी मिलती तो हिन्दुस्तान एक बहुत शक्तिशाली संयुक्त साम्राज्य हो जाता। यह कथन हालांकि किसी सीमा तक एक मानवीय गुण पर आधारित है, क्योंकि मृत्यु के पश्चात् प्रायः लोग मनुष्यों की प्रशंसा किया करते हैं, फिर भी यह देखना बहुत कठिन नहीं है कि इसमें सच्चाई की झलक भी पाई जाती है। शहजादा दाराशिकोह अकबर का अनुयायी था। वह केवल नाम का ही अकबर द्वितीय नहीं था, उसके विचार भी वैसे ही थे और उन विचारों को व्यावहारिकता में लाने का तरीका भी बिल्कुल मिलता हुआ नहीं, बल्कि उसके विचार अधिक रुचिकर थे और उनको व्यवहार में लाने के तरीके, नियमों और सिद्धान्तों में अधिक रुचि। उसकी गहन चिन्तन दृष्टि ने देख लिया था कि हिन्दुस्तान में स्थायी रूप से साम्राज्य का बना रहना सम्भव नहीं जब तक कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मेल-मिलाप और एकता स्थापित नहीं हो जाती। वह भली-भाँति जानता था कि शक्ति से साम्राज्य की जड़ नहीं जमती। साम्राज्य की स्थिरता व नित्यता के लिए यह आवश्यक है कि शासकगण लोकप्रिय सिद्धान्तों और सरल कानूनों से जनता के दिलों में घर कर लें। पत्थर के मजबूत किलों के बदले दिलों में घर करना अधिक महत्त्वपूर्ण है और सेना के बदले जनता की मुहब्बत व जान छिड़कने पर अधिक भरोसा करना आवश्यक है। दाराशिकोह ने इन सिद्धान्तों का व्यवहार करना प्रारम्भ किया था। उसने एक अत्यन्त रोचक तथा सार्थक पुस्तक लिखी थी जिसमें अकाट्य तर्कों से यह सिद्ध किया था कि मुसलमानों की नित्यता हिन्दुओं से एकता व संगठन पर आधारित है। .

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