Dhara Ka Rang Dhaani
धरा का रंग धानी प्रसन्नवदना धरती के विविधवर्णी स्वरूप की यायावरी दृष्टि है। पहाड़ों के उन्नत शीर्ष, अम्लान नदियों का कल-कल निनाद, झरनों का सुमधुर संगीत, गुफाओं की रहस्यमयी दुनिया एवं धार्मिक स्थलों का दिव्य आध्यात्मिक वातावरण इस पुस्तक में अतीव सुन्दर षब्द-चित्रों के साथ अंकित है। देवभूमि का प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक दर्शन, पीलीभीत के जंगलों का मनोहारी दृष्य, महाराष्ट्र राज्य में शिव, संस्कृति एवं कला का समन्वित स्वरूप साहित्यिक कलेवर में प्रस्तुत किया गया है। यात्रा-वृत्तांत में देश के प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक स्थलों के अनछुए पहलुओं के बारे में दुर्लभ जानकारी पाठक के सामान्य ज्ञान का विस्तार करती है। अंधाधुंध विकास की दौड़ में कंक्रीट के जंगल में परिवर्तित हो रहे नगरों एवं प्राकृतिक स्थलों की छटपटाहट को लेखक ने शाब्दिक अभिव्यक्ति दी है। देवभूमि उत्तराखंड से लेकर पूर्वात्तर राज्य त्रिपुरा, राजस्थान की मरुधरा एवं देश की गौरवशाली सांस्कृतिक परम्परा के वाहक अजंता एवं एलोरा की कला-कृतियों का बेहतरीन चित्रण लेखक की साहित्यिक सामर्थ्य का द्योतक है। वसुन्धरा के धानी रंग में छिपे मृदु-मयंक की सुड्ढमा, नव-जलद का सौन्दर्य, हरे-भरे वृक्षों की अप्रतिम छटा, अनेक प्रजाति के पुष्प-पौधों ने लेखक को यायावरी प्रवृत्ति का बना दिया है। उसकी यही प्रवृत्ति षब्दों में निबद्ध होकर लिपिबद्ध होने को विवष करती है।.
Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5.5 x 8.5
- Total Pages:264 pages
- Language:Hindi
- ISBN:978-9395482080
- Paper Type:PAPERBACK
- Publication Date:December 29 ,2022
Product Description
धरा का रंग धानी प्रसन्नवदना धरती के विविधवर्णी स्वरूप की यायावरी दृष्टि है। पहाड़ों के उन्नत शीर्ष, अम्लान नदियों का कल-कल निनाद, झरनों का सुमधुर संगीत, गुफाओं की रहस्यमयी दुनिया एवं धार्मिक स्थलों का दिव्य आध्यात्मिक वातावरण इस पुस्तक में अतीव सुन्दर षब्द-चित्रों के साथ अंकित है। देवभूमि का प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक दर्शन, पीलीभीत के जंगलों का मनोहारी दृष्य, महाराष्ट्र राज्य में शिव, संस्कृति एवं कला का समन्वित स्वरूप साहित्यिक कलेवर में प्रस्तुत किया गया है। यात्रा-वृत्तांत में देश के प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक स्थलों के अनछुए पहलुओं के बारे में दुर्लभ जानकारी पाठक के सामान्य ज्ञान का विस्तार करती है। अंधाधुंध विकास की दौड़ में कंक्रीट के जंगल में परिवर्तित हो रहे नगरों एवं प्राकृतिक स्थलों की छटपटाहट को लेखक ने शाब्दिक अभिव्यक्ति दी है। देवभूमि उत्तराखंड से लेकर पूर्वात्तर राज्य त्रिपुरा, राजस्थान की मरुधरा एवं देश की गौरवशाली सांस्कृतिक परम्परा के वाहक अजंता एवं एलोरा की कला-कृतियों का बेहतरीन चित्रण लेखक की साहित्यिक सामर्थ्य का द्योतक है। वसुन्धरा के धानी रंग में छिपे मृदु-मयंक की सुड्ढमा, नव-जलद का सौन्दर्य, हरे-भरे वृक्षों की अप्रतिम छटा, अनेक प्रजाति के पुष्प-पौधों ने लेखक को यायावरी प्रवृत्ति का बना दिया है। उसकी यही प्रवृत्ति षब्दों में निबद्ध होकर लिपिबद्ध होने को विवष करती है।.