CHATAK
अखबार में छपे à¤à¤• समाचार पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ पड़ते ही मैं खà¥à¤¶à¥€ से उछल पड़ी थी- सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कथाकार डॉ0 आदितà¥à¤¯ रंजन को साहितà¥à¤¯ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ सेवा के लिठइलाहाबाद वसंतोतà¥à¤¸à¤µ में ‘साहितà¥à¤¯ वारिधि’ के अलंकरण से सà¥à¤à¥‚षित कर समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ व पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ किया जा रहा था।
डॉ0 आदितà¥à¤¯ रंजन मेरे पà¥à¤°à¤¿à¤¯ कथाकार थे। नारी उदà¥à¤§à¤¾à¤° की उनकी à¤à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤µà¤£ कहानियाठपà¥à¤¤à¥‡-पà¥à¤¤à¥‡ कब वे मेरे आदरà¥à¤¶ बन गये थे मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› à¤à¥€ तो बोध नहीं हो पाया। नारà¥à¤¯à¥‹à¤šà¤¿à¤¤ बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में जकड़ी, मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लिठछटपटाती नारी की विवशता को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¸à¥‡ संवेदना परक रूप में उकेरा था कि मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा पतà¥à¤° लिखने से न रोक सकी थी। उनकी सरलता व सादगी पर मैं तब तो और à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ हो उठी थी जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरे पतà¥à¤° के उतà¥à¤¤à¤° के रूप में सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ का कोहरा बरसाता पतà¥à¤° मà¥à¤à¥‡ ततà¥à¤•à¤¾à¤² à¤à¥‡à¤œ दिया था।
बस तà¤à¥€ से पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के आदान-पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ का सिलसिला अबाधित रूप से चल पड़ा था। इधर से मेरा पतà¥à¤° जाता तो उधर से कà¥à¤› ही दिनों बाद खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बौछार सी करता हà¥à¤† उनका पतà¥à¤° चला आता। हाथ में आते ही उनके पतà¥à¤° को पहले अधरों से चूमती और फिर आà¤à¤–ें मूà¤à¤¦à¤•à¤° हृदय से लगा लेती तथा मन ही मन उनके रंग-रूप व वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करने लगती.... और कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के पंखों पर बैठकर कहीं से कहीं निकल जाती.... फिर पतà¥à¤° को पà¥à¤¨à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करती तो हर शबà¥à¤¦ में उनका अदृश चेहरा à¥à¥‚à¤à¤¢à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करने लगती।
.
Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5.5 x 8.5
- Total Pages:131 pages
- Language:Hindi
- ISBN:978-93-88256-71-1
- Publication Date:January 1 ,1970
Product Description
अखबार में छपे à¤à¤• समाचार पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ पड़ते ही मैं खà¥à¤¶à¥€ से उछल पड़ी थी- सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कथाकार डॉ0 आदितà¥à¤¯ रंजन को साहितà¥à¤¯ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ सेवा के लिठइलाहाबाद वसंतोतà¥à¤¸à¤µ में ‘साहितà¥à¤¯ वारिधि’ के अलंकरण से सà¥à¤à¥‚षित कर समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ व पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¥ƒà¤¤ किया जा रहा था।
डॉ0 आदितà¥à¤¯ रंजन मेरे पà¥à¤°à¤¿à¤¯ कथाकार थे। नारी उदà¥à¤§à¤¾à¤° की उनकी à¤à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤µà¤£ कहानियाठपà¥à¤¤à¥‡-पà¥à¤¤à¥‡ कब वे मेरे आदरà¥à¤¶ बन गये थे मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› à¤à¥€ तो बोध नहीं हो पाया। नारà¥à¤¯à¥‹à¤šà¤¿à¤¤ बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में जकड़ी, मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लिठछटपटाती नारी की विवशता को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¸à¥‡ संवेदना परक रूप में उकेरा था कि मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा पतà¥à¤° लिखने से न रोक सकी थी। उनकी सरलता व सादगी पर मैं तब तो और à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ हो उठी थी जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरे पतà¥à¤° के उतà¥à¤¤à¤° के रूप में सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ का कोहरा बरसाता पतà¥à¤° मà¥à¤à¥‡ ततà¥à¤•à¤¾à¤² à¤à¥‡à¤œ दिया था।
बस तà¤à¥€ से पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के आदान-पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ का सिलसिला अबाधित रूप से चल पड़ा था। इधर से मेरा पतà¥à¤° जाता तो उधर से कà¥à¤› ही दिनों बाद खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बौछार सी करता हà¥à¤† उनका पतà¥à¤° चला आता। हाथ में आते ही उनके पतà¥à¤° को पहले अधरों से चूमती और फिर आà¤à¤–ें मूà¤à¤¦à¤•à¤° हृदय से लगा लेती तथा मन ही मन उनके रंग-रूप व वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करने लगती.... और कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ के पंखों पर बैठकर कहीं से कहीं निकल जाती.... फिर पतà¥à¤° को पà¥à¤¨à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करती तो हर शबà¥à¤¦ में उनका अदृश चेहरा à¥à¥‚à¤à¤¢à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करने लगती।
.