AGHOSH
सागर कदाचित पागल हो गया था। घनघोर गरà¥à¤œà¤¨ कर उठती उसकी ऊà¤à¤šà¥€ लहरें मानों मानव को चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देती हà¥à¤ˆ गरजकर कह रही थी, â€à¤®à¤¾à¤¨à¤µ, तेरा अहंकार, तेरा हास-विलास अब सब कà¥à¤› समापà¥à¤¤ हो जायेगा। तू तो पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठसे ही हमसे, संपूरà¥à¤£ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से निरà¥à¤¬à¤² था किनà¥à¤¤à¥ अपनी बà¥à¤¼à¤¦à¥à¤§ के अंहकार में तू अपने को सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ समठबैठा। वरदान सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª तà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ दैवीय पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का अपनतà¥à¤µ, यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पशà¥-पकà¥à¤·à¥€, नदी-नाले, परà¥à¤µà¤¤, गà¥à¤«à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ के बंधन में बंधे तà¥à¤à¤¸à¥‡ पराजित हो बैठे। बनà¥à¤§à¥à¤¤à¥à¤š की उनकी इसी कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के ही कारण तू हर तरह के अवसाद से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो पृथà¥à¤µà¥€ पर निरà¥à¤¬à¤¾à¤§ विचरण करता था। इसी आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ से तू ऊà¤à¤šà¥‡, अछोर नठमें अपने कृतà¥à¤°à¤¿à¤® पंख फड़फड़ाता हà¥à¤† पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह उड़ा करता था।.
Product Details
- Format: Paperback, Ebook
- Book Size:5 x 8
- Total Pages:134 pages
- Language:Hindi
- ISBN:978-93-88256-12-4
- Publication Date:January 1 ,1970
Product Description
सागर कदाचित पागल हो गया था। घनघोर गरà¥à¤œà¤¨ कर उठती उसकी ऊà¤à¤šà¥€ लहरें मानों मानव को चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देती हà¥à¤ˆ गरजकर कह रही थी, â€à¤®à¤¾à¤¨à¤µ, तेरा अहंकार, तेरा हास-विलास अब सब कà¥à¤› समापà¥à¤¤ हो जायेगा। तू तो पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठसे ही हमसे, संपूरà¥à¤£ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से निरà¥à¤¬à¤² था किनà¥à¤¤à¥ अपनी बà¥à¤¼à¤¦à¥à¤§ के अंहकार में तू अपने को सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ समठबैठा। वरदान सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª तà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ दैवीय पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का अपनतà¥à¤µ, यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पशà¥-पकà¥à¤·à¥€, नदी-नाले, परà¥à¤µà¤¤, गà¥à¤«à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ के बंधन में बंधे तà¥à¤à¤¸à¥‡ पराजित हो बैठे। बनà¥à¤§à¥à¤¤à¥à¤š की उनकी इसी कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के ही कारण तू हर तरह के अवसाद से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो पृथà¥à¤µà¥€ पर निरà¥à¤¬à¤¾à¤§ विचरण करता था। इसी आतà¥à¤®à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ से तू ऊà¤à¤šà¥‡, अछोर नठमें अपने कृतà¥à¤°à¤¿à¤® पंख फड़फड़ाता हà¥à¤† पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तरह उड़ा करता था।.