कहते हैं दीपक जला। पर जलती तो बाती है। वही जल-जल कर प्रकाश देती है। खुद धुआँ बन जाती है पर रोशन करती है जहान को। इसी बाती की भाँति ही जब मन जला तो रोशनी के साथ ही साथ धुआँ भी उठा और वही धुआँ कलम की स ... Read More
कहते हैं दीपक जला। पर जलती तो बाती है। वही जल-जल कर प्रकाश देती है। खुद धुआँ बन जाती है पर रोशन करती है जहान को। इसी बाती की भाँति ही जब मन जला तो रोशनी के साथ ही साथ धुआँ भी उठा और वही धुआँ कलम की स्याही बन गया। कागज पर उतर गया।
शब्द सरल और सीधे, गंवई, परिचित ही रहे पर हाँ कविता बन गयी। बिना किसी विशेष प्रयास के। कुछ भावनायें इकठ्ठी हो गयीं तो उन्हें संकलित कर साहस किया आपको प्रेषित करने का। ज़माने के चलन के हिसाब से कहना तो यही पड़ेगा कि-एक दीपक जला। हाँ मैं ‘‘दीपक‘‘ हूँ।