पथरीली, उबड़-खाबड़ सीढ़ियों को चढ़ते हुए, मिहिर के पाँव थकने लगे थे। ऊपर पहाड़ पर बने माता के जिर्ण मन्दिर तक पहुँचने की चाहत लिए, वह चल तो पड़ा था लेकिन ठंढ के उस मौसम में, शीतल हवाओं को झेलते हुए, उसके ... Read More
पथरीली, उबड़-खाबड़ सीढ़ियों को चढ़ते हुए, मिहिर के पाँव थकने लगे थे। ऊपर पहाड़ पर बने माता के जिर्ण मन्दिर तक पहुँचने की चाहत लिए, वह चल तो पड़ा था लेकिन ठंढ के उस मौसम में, शीतल हवाओं को झेलते हुए, उसके हाथ ठिठुरने लगे थे। बदन पर एक गर्म शॉल ओढ़े, वह एक पत्थर की सीढ़ी पर थक कर बैठ गया। काँपते पाँव आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। भूखे पेट में कुलबुलाहट हो रही थी। साँसे फूलने लगी। सूखे होठों को पानी की तलब होने लगी। उसने नज़र दौड़ा कर इधर-उधर देखा तो दूर तक कोई दिखाई नहीं दिया। ढलती शाम में बस अब थोड़ी धूप बाकी रह गई थी। आसमान में उमड़ती-घूमड़ती घटाएँ; बहुत नजदिक से गुजर रही थी। कोहरा बढ़ने लगा था। ठंढ के मौसम में बहुत कम लोग शायद यहाँ आते थे।